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Friday, June 20, 2014

अच्छे दिन

कुतर्को की चादर आज भी बिछाई जा रही है
सत्ता के हर फ़ैसले की आरती गायी जा रही है

ये हर इक मुराद को माचिस दिखाएँगे देखो
जिनके वादों की बतिया बनाई जा रही है

कुछ तो ज़मीर, फटे जेब का ख़याल भी हो
आँख बस मूँद के भगवा सिलाई जा रही हैं

सबके पैरों में बवाई हीं फटेंगे अब तो
कीमतें रास्तों की जो बढ़ाई जा रही है

अपनी औक़ात है बस दंभ और दलीलों का
वहाँ संसद में बंदरिया नचायी जा रही है

अक्ल की आँख से तुम अपनी जहालत देखो
'अच्छे दिन' के शीशे में शक्लें दिखायी जा रही है


(आज भी 'वे' कुतर्क गढ़ेंगे नए-नए, क्यूंकि जीत 'उनकी' है पर जहालत के शिकार 'हम' ! )

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