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Friday, June 6, 2014

बिन तेरे

बिन तेरे मुझपे अँधेरे का असर होता है
अश्क की धार में जीवन का सफ़र होता है

कोई छुपने की जगह हो तेरे कूचे के तले
तेरा दीदार हो ऐसे न बसर होता है

तुझे निहारते ख़्वाबों में तसव्वुर मेरे
कब ढ़ले शाम, कब जाने सहर होता है

कभी चिराग जो साये को छेड़ती है तेरे
मेरे साये से ज़ुदा नूर-ए-नज़र होता है

मै तेरे वास्ते गलियों से जब गुजरता हूँ
किसी के हाथ से पथराव का डर होता है


( 28/12/2011 )

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