रचा है अपनों ने तिलिस्म फँस के बैठा हूँ
कलम की कोर से आँसू छुपाए बैठा हूँ ।
ये जो कहने को अपने यार और साथी हैं
सबको एक बार फिर से आज़माए बैठा हूँ ।
मेरे ख्वाबों को इतने पास आके मत देखो
गमों के धूप में इसको पकाए बैठा हूँ ।
मिले जो वक़्त तो मेरी तरह तन्हाई में सोंचो
तेरे भी पल कई दिल में दबाए बैठा हूँ ।
रहा यकीन ना मेरा किसी खुदाई पर
यूं अपनी ज़िंदगी गाली बनाए बैठा हूँ ।
26/11/2013
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