Followers

Thursday, May 29, 2014

तिलिस्म

रचा है अपनों ने तिलिस्म फँस के बैठा हूँ 
कलम की कोर से आँसू छुपाए बैठा हूँ  । 

ये जो कहने को अपने यार और साथी हैं 
सबको एक बार फिर से आज़माए बैठा हूँ । 

मेरे ख्वाबों को इतने पास आके मत देखो 
गमों के धूप में इसको पकाए बैठा हूँ  । 

मिले जो वक़्त तो मेरी तरह तन्हाई में सोंचो 
तेरे भी पल कई दिल में दबाए बैठा हूँ । 

रहा यकीन ना मेरा किसी खुदाई पर 
यूं अपनी ज़िंदगी गाली बनाए बैठा हूँ । 

26/11/2013 






No comments:

Post a Comment