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Tuesday, October 21, 2014

कहीं लौ थरथराते-से, कहीं हाथों में फुलझरियाँदीवाली काँपते अरमानों की है एक गवाही !

Thursday, October 16, 2014


वक़्त बेवक़्त जो अपने हैं पीछे छूट जाते हैं
जरा सी आँधियाँ आती हैं पत्ते टूट जाते हैं !

Wednesday, October 8, 2014

प्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग से बात-चीत














इस साक्षात्कार के लिए हमारे शिक्षक डॉ अरविंद कुमार संबल, अनुज अभिषेक कुमार उपाध्याय समान रूप से साधुवाद के पात्र हैं